वेदों की संख्या
1. क्या प्रारंभ में एक ही वेद था, जो बाद में चार भागों में महर्षि व्यास द्वारा विभाजित कर दिया गया?
वास्तव में मानव सृष्टि के बाद प्रारंभ से ही चार वेद थे। परन्तु कुछ पुराण जैसे वायु, विष्णु, मत्स्य एवं अग्नि पुराण में ऐसा वर्णन है कि प्रारंभ में एक ही वेद था, द्वापर के अंत में कृष्णद्वैपायन व्यास ने उसे चार भागों में बाँट दिया।
यह कहने मात्र का अंतर है, क्योंकि सृष्टि के आदि में दिया गया ईश्वरीय ज्ञान तो समग्र रूप से एक ही था, भले ही चार वेदों में हो, और उसी वेदज्ञान को अन्य ऋषियों की भांति द्वापर के अंत में कृष्णद्वैपायन व्यास ने समझाया हो।
व्यास जी वेदों के रचयिता नहीं थे, क्योंकि वेद तो व्यास जी के पहले से थे। चारों वेदों के नाम से प्रारंभ से ही चार वेद हैं।
स्वयं वेदों, वेदोत्तर वाङ्मय तथा अन्य आप्त वचनों से प्रमाणित है कि सृष्टि के आदि में ही एक साथ चारों वेदों का प्रादुर्भाव हुआ।
वेदव्यास द्वारा वेद के चार विभाग किये जाने की कल्पना अयुक्त तथा सर्वथा असंगत है।
व्यास के पूर्व तो उपनिषद् तथा ब्राह्मण ग्रन्थ अस्तित्व में आ चुके थे और उनमें चारों वेदों की शाखाओं का वर्णन है। स्पष्ट रूप से पहले चार वेद होने पर ही उनकी शाखाएं बनीं।
यह हो सकता है कि वेदव्यास ने अपने समय में भिन्न-भिन्न बहुत-सी शाखाएँ बन जाने के कारण ब्राह्मण और श्रौतसूत्रादि का निश्चय कर दिया हो कि किस-किस शाखा का कौन-कौन-सा ब्राह्मण है। यह भी सम्भव है कि उन्होंने शाखाओं का प्रवचन वा उनकी व्यवस्था की हो।
2. प्रारंभ से ही चारों वेदों के क्या प्रमाण हैं?
समस्त आर्यधर्मग्रंथों जैसे ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद, महाभारत, मनुस्मृति, यहाँ तक कि वेद से भी चार वेदों के प्रमाण मिलते हैं।
कुछ प्रमुख प्रमाण:
ऋग्वेद ४/५८/३, यजुर्वेद १७/९१
चत्वारि शृङ्गास्त्रयोऽस्य पादाः।
निरुक्त १३/७: चत्वारि शृङ्गा वेदा वा एता उक्ताः।अथर्ववेद ४/३५/६
यस्मिन् वेदा निहिता विश्वरूपाः।
अथर्ववेद १९/९/१२
ब्रह्म प्रजापतिर्धाता लोका वेदाः सप्तऋषयोऽग्नयः।
ऋग्वेद १०/९०/९, यजुर्वेद ३१/७
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः, ऋचः सामानि जज्ञिरे...
मुण्डक उपनिषद १/१/५
तत्रापरा ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्ववेदः।
छांदोग्य उपनिषद ७/७/२
विज्ञानेन वा ऋग्वेदं विजानाति यजुर्वेदं सामवेदम् अथर्वणं चतुर्थम्।
गोपथ ब्राह्मण पूर्व १/१६, ५/१६
अथर्ववेद को ब्रह्मवेद कहा गया है।
महाभारत सभा पर्व ११/३२
ऋग्वेदः सामवेदश्च यजुर्वेदश्च पाण्डव। अथर्ववेदश्च तथा सर्वशास्त्राणि चैव हि॥
वाल्मीकि रामायण किष्किन्धा कांड, तृतीय सर्ग
नानृग्वेद-विनीतस्य नायजुर्वेदधारिणः। नासामवेदविदुषः शक्यमेवं विभाषितुम्॥२८॥
गोपथ ब्राह्मण पूर्वभाग ३/१
ऋग्विदमेव होतारं वृणीष्व... अथर्वाङ्गिरोविदं ब्रह्माणम्।
3. कुछ कहते हैं कि वेद तो तीन ही हैं। क्या अथर्ववेद बाद में जोड़ा गया है?
यह कहना पूर्णतः गलत है। ऊपर दिए प्रमाणों में चारों वेद एक साथ वर्णित हैं।
त्रयी विद्या का अर्थ केवल तीन वेदों का अस्तित्व नहीं है, बल्कि तीन प्रकार की विद्याओं (ज्ञान, कर्म, उपासना) की ओर संकेत करता है, जो चारों वेदों में विद्यमान है।
महाभारत शान्ति पर्व २३५/१
त्रयीविद्यामवेक्षेत वेदेषूक्तामथाङ्गतः...
शतपथ ब्राह्मण ४/६/७/१
त्रयी वै विद्या ऋचो यजूंषि सामानि।
4. क्या यह ठीक है कि चारों वेदों की उत्पत्ति ब्रह्मा के चारों मुखों से हुई है?
यह एक आलंकारिक कथन है। इसका तात्पर्य यह है कि वेदों की उत्पत्ति ईश्वर से हुई है, किसी अन्य देवता या व्यक्ति से नहीं।
यजुर्वेद ३१/७
तस्माद्यज्ञात् सर्वहुतः ऋचः सामानि जज्ञिरे...
अथर्ववेद १०/७/२०
यस्मादृचो अपातक्षन् यजुर्यस्मादपाकषन्...
शतपथ ब्राह्मण १४/५
ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरसः इत्यादि॥
मनुस्मृति १/२३
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्मा सनातनम्...
क्या महाभारत को वेदव्यास ने लेखनीबद्ध किया?
कुछ मतों के अनुसार महाभारत काल में वेदों का लिपिबद्ध रूप में संकलन हुआ। लेकिन ब्राह्मण ग्रंथ, उपनिषद, रामायण आदि ग्रंथ महाभारत से पूर्व के हैं और उनका अस्तित्व है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि वेदों का भी लिपिबद्ध रूप पहले से संभव था।
महर्षि दयानंद ने माना है कि इक्ष्वाकु वंश से लेखन की परंपरा प्रारंभ हुई।
5. क्या वैदिक संस्कृत भाषा मानव सृष्टि के प्रारंभ से है?
हाँ, वैदिक संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है और आज की समस्त भाषाओं की जननी है। भाषाशास्त्र भी इस पर सहमत हैं।
6. क्या वेदों को मनुष्य ने बनाया?
नहीं। मनुष्य का ज्ञान सीमित, विरोधाभासयुक्त एवं परिस्थितियों पर आधारित होता है।
वेद सार्वलौकिक ज्ञान हैं, जिनका स्रोत केवल परमेश्वर हो सकता है।
7. क्या वेदज्ञान के अलावा मनुष्य ज्ञान का विकास नहीं कर सकता?
विकास कर सकता है, निर्माण नहीं।
ज्ञान दो प्रकार का होता है:
नैमित्तिक - ईश्वरप्रदत्त (जैसे वेद)
स्वाभाविक - मनुष्य का अनुभव आधारित (जैसे विज्ञान, कला)
8. वेदों का आविर्भाव कितने वर्ष पहले हुआ?
मानव सृष्टि के प्रारंभ में —
१,९६,०८,५३,१२५ वर्ष पूर्व (वैदिक कालगणना के अनुसार)
लगभग दो अरब वर्ष (वैज्ञानिक अनुमानों के अनुसार)
9. फिर पाश्चात्य विद्वान वेदों का रचनाकाल दो-चार हजार वर्ष ईसा-पूर्व क्यों मानते हैं?
इसके कई कारण हैं:
वे वैदिक वाङ्मय से अपरिचित हैं
वे बाइबिल की सीमित समयरेखा (8,000 वर्ष) के कारण वेदों को प्राचीन नहीं मानते
पश्चिमी लेखकों का दृष्टिकोण पक्षपाती है
जबकि वेदों में इतिहास नहीं, ज्ञान है। उनका काल अत्यंत प्राचीन है और किसी मानव द्वारा रचित नहीं है।
