वेदों का उत्पत्तिकाल और महत्त्व
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वेदों का उत्पत्तिकाल और महत्त्व

आचार्य विजय आर्य
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Jul 7, 2025
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१. परमात्मा द्वारा सृष्टि के आदि में वेदों की उत्पत्ति-प्रकाट्य-प्रादुर्भाव

वेदों के उत्पत्ति काल के विषय में पाश्चात्य विद्वानों के साथ भारतीय विद्वानों में भी परस्पर मतभेद है - कुछ लोग वेद को कुछ हजार वर्ष पूर्व और कुछ करोड़ों वर्ष पूर्व का मानते हैं। पाश्चात्य विद्वान् मैक्समूलर और मैकडॉनल के मत में वेदों का उत्पत्ति काल ईसा पूर्व १२०० वर्ष है। इन सभी मतों को असत्य सिद्ध करते हुए महाभारत में महर्षि वेदव्यास वेदों को सृष्टि के आदि में प्रकट हुआ मानते हैं -

अनादिनिधना नित्या वागुत्सृष्टा स्वयंभुवा।
आदौ वेदमयी दिव्या यतः सर्वाः प्रवृत्तयः ॥ - महाभारत, शांतिपर्व २३२ । २४

(भाव: सृष्टि के आदि में स्वयम्भू परमात्मा से वेदरूपी दिव्य वाणी का प्रादुर्भाव हुआ, जो नित्य है और जिससे सारी प्रवृत्तियाँ चलीं।)

(यहाँ कोई संदेह करें कि वेदों को अनादि और नित्य भी माना गया और इसकी उत्पत्ति भी बताई गई, तो इसका अर्थ यह है कि वेद परमात्मा के अनन्त ज्ञान में सदैव विद्यमान रहते हैं, उसी के कारण यह नित्य भी हैं; परन्तु सृष्टि को बनाने के साथ परमात्मा मनुष्य को अपने अनन्त ज्ञान से वेदज्ञान भी देता है, इसी को व्यवहारिक भाषा की दृष्टि से वेदों की उत्पत्ति कह दिया जाता है, परन्तु वास्तव में यह मनुष्य को वेदज्ञान देने की प्रक्रिया है।)

स्वयं ऋग्वेद के अनुसार सर्गारम्भ में ऋषियों से ईश्वरप्रदत्त वेद का आविर्भाव हुआ -

बृहस्पते प्रथमं वाचो अग्रं यत्प्रैरत नामधेयं दधानाः।
यदेषां श्रेष्ठं यदरिप्रमासीत्प्रेणा तदेषां निहितं गुहाविः॥ - ऋग्वेद १०/७१/१

(भावार्थ: सृष्टि हो चुकी, मनुष्यों की उत्पत्ति हो चुकी। परमात्मा ने सर्गारम्भ में श्रेष्ठ ऋषियों को वेदज्ञान दिया। यह वाणी का प्रथम प्रकाश था।)

ऋतं च सत्यं चाभिद्धात्तपसोऽध्यजायत। - ऋग्वेद १० । १९० । १

(परमात्मा ने अपने ज्ञानबल से ऋत और सत्य के नाम से मानव मात्र के लिए वेदविद्या रूपी सम्पूर्ण विधि-विधान का निर्माण किया।)

सर्वेषां तु स नामानि कर्माणि च पृथक् पृथक् ।
वेदशब्देभ्य एवाऽऽदौ पृथक्संस्थाश्च निर्ममे ॥ - मनुस्मृति १ । २१

(परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में वेद के शब्दों से ही पदार्थों के नाम, कर्म और विभागों की रचना की।)


क्या परमात्मा के ज्ञान का सृष्टि के आरंभ में प्रकट होना आवश्यक है?

(उत्तर: हाँ। सृष्टि निर्माण के साथ ही यदि ज्ञान न मिले, तो यह पक्षपातपूर्ण होता। मैक्समूलर तक ने इसे स्वीकारा है।)

"If there is a God who has created heaven and earth it will be unjust on his part, if he deprives millions of his sons, born before Moses, of his divine knowledge..." - Max Müller


२. वेद स्वतः प्रमाण, परम प्रमाण और ईश्वर-प्रदत्त (अपौरुषेय) हैं

निजशक्त्यभिव्यक्तेः स्वतः प्रामाण्यम्। - सांख्यदर्शन ५।५१

(परमात्मा की शक्ति से प्रकट होने से वेद स्वतः प्रमाण हैं।)

अर्थकामेष्वसक्तानां धर्मज्ञानं विधीयते।
धर्मजिज्ञासमानानां प्रमाणं परमं श्रुतिः ॥ - मनुस्मृति - २/१३

तद्वचनादाम्नायस्य प्रामाण्यम् ॥ - वैशेषिक दर्शन १।१।३

शास्त्रयोनित्वात्।―(वेदान्तदर्शन १/१/३)

न पौरुषेयत्वं तत्कर्तुः पुरुषस्याभावात्।।―(सांख्यदर्शन ५/४६)

(वेद अपौरुषेय हैं क्योंकि उनका रचयिता कोई मनुष्य नहीं है।)


३. वेदों की रचना बुद्धिपूर्वक है

बुद्धिपूर्वा वाक्यकृतिर्वेदे। - वैशेषिक दर्शन ६।१।१

(वेद की रचना तर्क और बुद्धि से सम्पन्न है।)


४. सब वेद धर्म के मूल और ज्ञानमय हैं

वेदोऽखिलो धर्ममूलम्। - (मनु २-६)

सर्वज्ञानमयो हि सः। - (मनु० २.७)

(वेद सर्वज्ञान का स्रोत हैं।)


५. ब्राह्मणादि द्विजों का परम धर्म और तप - वेदाभ्यास

योऽनधीत्य द्विजो वेदमन्यत्र कुरुते श्रमम्।
स जीवन्नेव शूद्रत्वमाशु गच्छति सान्वयः॥ - मनु० २।१६८

या हि नः सततं बुद्धिर्वेदमन्त्रानुसारिणी।
त्वत्कृते सा कृता वत्स वनवासानुसारिणी।
हृदयेष्वेव तिष्ठन्ति वेदा ये नः परं धनम्।
वत्स्यन्त्यपि गृहेष्वेव दाराश्चारित्ररक्षिताः॥
―(वा० रा० अयो० ५४/२४,२५)

(श्रीराम वन जा रहे थे, तब ब्राह्मणों ने कहा कि वेद हमारे हृदय में हैं और वे ही हमारा धन हैं।)


६. वेदों की निंदा करने वाला नास्तिक है

नास्तिको वेदनिन्दकः - (मनु० २/११)

(वेद को न मानने वाला ही सच्चा नास्तिक है।)


७. चार ऋषियों के माध्यम से वेदों का प्रादुर्भाव

तेभ्यस्तप्तेभ्यस्त्रयो वेदा अजायन्त, अग्नेर्ऋग्वेदो, वायोर्यजुर्वेदः, सूर्यात्सामवेदः। - शतपथ ब्राह्मण ११/५/२/३

एवं वा अरेऽस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद्।
यदृग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरसः ॥ - शतपथ ब्राह्मण १४/५

अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्।
दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुःसामलक्षणम्॥ - मनुस्मृति १ । २३

(आदि सृष्टि में परमात्मा ने ऋषियों के माध्यम से चारों वेदों का प्रादुर्भाव किया।)


प्रश्न - मुण्डक उपनिषद में ब्रह्मा के पुत्र अंगिरस का वर्णन है...

(उत्तर: अंगिरा नाम के अनेक ऋषि हुए हैं, जैसे परशुराम नाम के। अतः अंगिरा भी अनेक हो सकते हैं।)


[लेख रचना में विभिन्न पुस्तकों से सहायता ली गई है।]