धरती की धड़कनों को सुनने निकला है NISAR: विज्ञान और संवेदना का साझा अभियान
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धरती की धड़कनों को सुनने निकला है NISAR: विज्ञान और संवेदना का साझा अभियान

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Harendra Dudi
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Aug 1, 2025
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NISAR के ज़रिए हम पृथ्वी में होने वाले बदलावों को हर हफ्ते माप सकेंगे — हर पिक्सल उस क्षेत्र को कैप्चर करेगा जो लगभग एक टेनिस कोर्ट के आधे हिस्से जितना बड़ा है। इस तरह, हम पृथ्वी को एक जीवित प्रणाली के रूप में समझने का एक एकीकृत चित्र बना पाएंगे।

— Paul Rosen, Project Scientist for NISAR at NASA JPL (Translated)


नमस्ते दोस्तों,

क्या आपने कभी महसूस किया है कि धरती हमसे कुछ कहना चाहती है?
वो चुप रहती है, लेकिन उसका हर कंपन, हर बदलाव — एक संकेत होता है।
कहीं कोई हिमनद धीरे-धीरे पिघल रहा है…
कहीं ज़मीन खिसक रही है…
कहीं जंगल सिकुड़ रहे हैं…
और हम, इंसान, इन आवाज़ों को अक्सर तब सुनते हैं जब बहुत देर हो चुकी होती है।

आज हम जिस दौर में जी रहे हैं, वहां जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएं और पारिस्थितिक असंतुलन कोई दूर की चीज़ नहीं रही। ये हमारी रोज़मर्रा की हकीकत बन चुकी है।
लेकिन अब सवाल ये है — क्या हम अपनी धरती की धड़कनों को समय रहते पहचान पाएंगे?

इसी सवाल का जवाब है — NISAR.

NASA और ISRO का यह साझा मिशन सिर्फ एक और सैटेलाइट नहीं है, बल्कि यह धरती को समझने की एक नई शुरुआत है।

एक ऐसी आंख, जो हर 12 दिन में पूरे ग्रह की स्कैनिंग करेगी। एक ऐसी तकनीक, जो ज़मीन की मामूली सी भी हरकत को पहचान सकेगी। और सबसे बड़ी बात — एक ऐसा कदम, जो हमें चेतावनी देगा पहले, ताकि हम बचाव कर सकें समय पर

सोचिए, अगर हम अपनी धरती की छोटी-छोटी चेतावनियों को पहले ही सुन लें — तो शायद आने वाली आपदाएं टल जाएं। NISAR यही वादा करता है — कि अब हम सिर्फ बदलावों को सहेंगे नहीं, बल्कि उन्हें पहले से जानकर समझदारी से जवाब देंगे।

तो आइए, इस ब्लॉग में हम समझते हैं कि NISAR क्या है, यह कैसे काम करता है, और हम सभी के जीवन में यह क्या बदलाव ला सकता है।

NISAR क्या है? — जब विज्ञान धरती की नब्ज़ पढ़ेगा

हमारे चारों ओर की धरती हमेशा चल रही है। ज़रूरी नहीं कि हम उसे हिलता हुआ देखें — लेकिन कहीं कोई ग्लेशियर धीमे-धीमे पिघल रहा है, कहीं किसी शहर की ज़मीन नीचे धंस रही है, और कहीं कोई जंगल धीरे-धीरे सिकुड़ रहा है।

अब तक हम इन बदलावों को या तो महसूस ही नहीं कर पाते थे, या तब समझते थे जब वो किसी त्रासदी में बदल जाते थे।

लेकिन अब NISAR आ रहा है — एक ऐसी निगाह बनकर जो इन अदृश्य हरकतों को देख सके, माप सके और समझा सके।

 तो आखिर NISAR है क्या?

NISAR, यानी NASA–ISRO Synthetic Aperture Radar,
एक उन्नत उपग्रह (satellite) है, जिसे संयुक्त रूप से अमेरिका की NASA और भारत की ISRO ने विकसित किया है।

इस मिशन का उद्देश्य है — धरती की सतह पर हो रहे बदलावों की सबसे बारीक निगरानी करना। और ये कोई साधारण निगरानी नहीं है — ये मिशन मिलीमीटर स्तर की हरकतों को मापने में सक्षम है!

इसे खास बनाते हैं इसके अद्भुत फीचर:

 1. Dual-Frequency Radar (L-band + S-band):

  • पहली बार कोई उपग्रह दो अलग-अलग रडार बैंड्स का इस्तेमाल करेगा —

    • L-बैंड (NASA से) — गहराई में झांकने में माहिर

    • S-बैंड (ISRO से) — सतह के ऊपर की हरकतों को पकड़ने में तेज़

  • ये दोनों मिलकर हमें एक ऐसी तस्वीर देंगे जो पहले कभी मुमकिन नहीं थी।

 2. पूरी पृथ्वी पर नज़र — हर 12 दिन में:

  • यह सैटेलाइट हर 12 दिन में एक बार पूरे ग्रह का स्कैन करेगा।

  • इसका मतलब है — लगातार, क्रमिक और सटीक डेटा, जो समय के साथ बदलते ट्रेंड्स को पकड़ पाएगा।

 3. GSLV रॉकेट से प्रक्षेपण:

  • 30 जुलाई 2025 को शाम 5:40 बजे IST पर, भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ISRO के GSLV-F16 रॉकेट द्वारा NASA–ISRO NISAR मिशन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।

इस सैटेलाइट का मकसद सिर्फ विज्ञानियों को डेटा देना नहीं है।
यह किसानों, शहरवासियों, नीति-निर्माताओं और आम जनता — सभी के लिए है।

  • अगर कोई नदी का तट कट रहा है — तो NISAR पहले से बता सकता है।

  • अगर कोई ग्लेशियर बहुत तेज़ी से पिघल रहा है — तो अलर्ट दे सकता है।

  • अगर कोई क्षेत्र भूधंसाव की चपेट में है — तो वहां की आबादी को समय रहते चेताया जा सकता है।

यह मिशन एक तरह से धरती की धड़कनों की रिकॉर्डिंग है —
हर बीट, हर हलचल को समझना… ताकि हम उसका सम्मान कर सकें, और उसके साथ तालमेल बिठा सकें।

 एक साथ, एक लक्ष्य — भारत और अमेरिका की साझेदारी

NISAR एक ऐसा मिशन है जिसमें दो देशों की तकनीक, विज्ञान और दृष्टिकोण का सुंदर संगम है।
NASA ने जहां उपग्रह का रडार सिस्टम और सॉफ्टवेयर विकसित किया है,
वहीं ISRO ने सैटेलाइट का ढांचा, प्रक्षेपण यान और ज़मीन आधारित नियंत्रण तंत्र संभाला है।

यह साझा विज्ञान, साझा ज़िम्मेदारी और साझा समाधान का प्रतीक है।

अब जब हमने समझ लिया कि NISAR क्या है,
आइए अगले हिस्से में देखें कि यह मिशन हमारे जीवन में कितना बड़ा बदलाव ला सकता है —
क्योंकि बदलाव केवल आंकड़ों में नहीं होता, बल्कि लोगों के अनुभवों में झलकता है।

NISAR इतना महत्वपूर्ण क्यों है? — जब बदलाव दिखने से पहले पकड़े जाएंगे

हम सबने महसूस किया है — मौसम अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले था। कभी बारिश अचानक ज़्यादा हो जाती है, कभी सूखा महीनों तक टिकता है।
पहाड़ों पर बर्फ़ कम हो रही है, तटीय इलाकों में ज़मीन खिसक रही है, और कई शहर धीरे-धीरे ज़मीन में धँसने लगे हैं।

लेकिन हम में से कितनों को पता होता है कि यह बदलाव कब और कैसे शुरू हुआ?

यहीं पर आता है NISAR का असली महत्व।

यह सिर्फ एक सैटेलाइट नहीं है —
यह एक समय से पहले चेतावनी देने वाला यंत्र है। एक ऐसा सिस्टम जो कहता है — “मैंने देखा है, कुछ बदल रहा है।”

 आइए समझते हैं कि NISAR किस तरह हमारे जीवन को छूता है:

 1. हिमनदों (Glaciers) की निगरानी:

हिमालय और अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में बर्फ़ की चुपचाप पिघलती परतें समुद्र-स्तर में धीमी लेकिन विनाशकारी बढ़ोतरी का कारण बनती हैं।

NISAR पहली बार इन बर्फीले इलाकों की हरकतों को समय पर माप सकेगा।
यह जानना ज़रूरी है कि कौन-से ग्लेशियर सबसे तेज़ पिघल रहे हैं, ताकि निचले तटीय इलाकों को समय रहते तैयार किया जा सके।

 2. कृषि और जल संसाधन प्रबंधन:

NISAR मिट्टी की नमी, ज़मीन की ऊँचाई में बदलाव, और जल निकासी पैटर्न की निगरानी कर सकेगा।

इससे किसानों को यह जानने में मदद मिलेगी कि उनकी ज़मीन किस तरह बदल रही है, कहाँ कटाव हो रहा है, और कहाँ जलभराव का ख़तरा है। यह मिशन जल प्रबंधन, सिंचाई योजनाओं और फसल-चक्र तय करने में भी मददगार होगा।

3. शहरी इलाकों की सुरक्षा:

शहरों में अक्सर ज़मीन धीरे-धीरे बैठने लगती है — जिसे हम तब तक नहीं समझ पाते जब तक इमारतों में दरारें न पड़ने लगें।

NISAR ऐसे बदलावों को पहले ही पकड़ सकेगा। यह प्रशासन और नीति-निर्माताओं को आवासीय और औद्योगिक क्षेत्रों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण डेटा देगा।

4. तटीय क्षरण और समुद्र स्तर में वृद्धि:

NISAR उन इलाकों की निगरानी करेगा जहाँ समुद्र ज़मीन को धीरे-धीरे निगल रहा है।

यह पता लगाया जा सकेगा कि कौन-सी तटीय आबादियाँ सबसे ज़्यादा जोखिम में हैं, और किन क्षेत्रों को तुरंत राहत और पुनर्वास की आवश्यकता है।

 5. आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली को मज़बूती:

भूस्खलन, भूकंप, बाढ़, सूखा — ये सभी आपदाएँ ऐसे संकेत पहले देती हैं जिन्हें NISAR पकड़ सकता है।

सिर्फ आपदा के बाद राहत देना काफी नहीं होता — अब समय है आपदाओं को पहले से पहचानने और टालने का।

NISAR इस दिशा में हमारी आँखें और कान दोनों बनेगा।

 6. जलवायु परिवर्तन को समझने में क्रांति:

अब तक जलवायु परिवर्तन पर हम अनुमान लगाते रहे हैं — लेकिन अब हमारे पास ठोस, विस्तृत और नियमित डेटा होगा।

ये डेटा ग्लोबल क्लाइमेट पॉलिसी, IPCC रिपोर्ट्स, और अंतरराष्ट्रीय समझौतों (जैसे पेरिस समझौता) को और सटीक बनाएगा।

यानी NISAR हमें डेटा नहीं — समझदारी देगा।

एक ऐसी समझदारी जो हमें हमारी धरती के साथ और ज़िम्मेदारी से जुड़ने का मौका देगी।

यह पहली बार है जब हम “देखने के बाद सोचने” की जगह “देखने से पहले जानने” की ओर बढ़ रहे हैं।

NISAR का असर — एक आम इंसान की नज़र से

वैज्ञानिक खोजें अक्सर हमें बड़ी लगती हैं — जैसे किसी लैब या अंतरिक्ष केंद्र की चीज़ें, जो हमारी ज़िंदगी से दूर हैं।
लेकिन NISAR वैसा नहीं है।

ये मिशन सिर्फ आंकड़े इकट्ठा करने के लिए नहीं बना, बल्कि उन ज़िंदगियों को बेहतर बनाने के लिए है जो धरती पर चल रहे बदलावों का सामना कर रही हैं — कभी अनजाने में, कभी असहाय होकर।

तो चलिए जानते हैं कि ये सैटेलाइट सीधे तौर पर हमारे जीवन को कैसे छूता है:

 1. किसानों के लिए ज़मीन की आवाज़ सुनना

किसान को उसकी ज़मीन की नब्ज़ समझना ज़रूरी है। NISAR मिट्टी की नमी, ऊँचाई में बदलाव, और भूमि कटाव की जानकारी दे सकेगा।

  • कौन-सा क्षेत्र जलभराव वाला है?

    किस ज़मीन में दरारें पड़ रही हैं?

  • कहां सिंचाई की ज़रूरत है?

इन सवालों के जवाब अब समय रहते मिल सकते हैं, जिससे फसल बर्बाद होने से पहले कदम उठाया जा सकेगा।

 2. शहरों की सुरक्षा — इमारतें, पुल और ज़मीन

शहरों में कई बार इमारतें अचानक बैठ जाती हैं, या ज़मीन धँसने लगती है — और हम समझ नहीं पाते क्यों।

NISAR ऐसे बदलावों को मिलीमीटर स्तर पर पकड़ सकता है, जिससे नगरपालिका या इंजीनियरिंग टीमें समय रहते कार्रवाई कर सकें।

  • कहां ज़मीन कमजोर हो रही है?

  • कौन-सी इमारतें रिस्क में हैं?

  • नया निर्माण कहाँ सुरक्षित होगा?

3. प्राकृतिक आपदाओं के पहले संकेत

भूस्खलन, बाढ़, सूखा — ये आपदाएं अचानक नहीं आतीं, लेकिन हम अक्सर तैयार नहीं होते।

NISAR की लगातार निगरानी से हम जान पाएंगे:

  • कौन-सा इलाका अस्थिर हो रहा है?

  • कितनी नमी जमीन में जमा हो चुकी है?

  • किन इलाकों में बाढ़ की आशंका है?
    यह मिशन हमें आपदाओं के बाद नहीं, पहले सचेत करेगा।

 4. शिक्षा और रिसर्च में क्रांति

विश्वविद्यालयों, स्कूलों और शोध संस्थानों के लिए NISAR का डेटा एक खुला खजाना होगा।

  • जलवायु परिवर्तन पर छात्रों की स्टडी

  • आर्किटेक्चर और इंजीनियरिंग में रियल डेटा

  • पर्यावरण विज्ञान के छात्रों को व्यावहारिक समझ

 इससे अगली पीढ़ी सिर्फ किताबों से नहीं, धरती के असली डेटा से सीख सकेगी।

 5. नीति और योजना में वैज्ञानिक आधार

सरकारी योजनाएं अक्सर पुराने आंकड़ों पर आधारित होती हैं। NISAR उन्हें ताज़ा, नियमित और सटीक जानकारी देगा।

  • किस इलाके में पुनर्वास की ज़रूरत है?

  • कहां सड़कें या रेलवे लाइन बनाना सुरक्षित है?

  • पर्यावरण संरक्षण कहाँ ज़रूरी है?

 यह मिशन योजनाओं को कागज़ से ज़मीन पर उतरने में मदद करेगा।

अब जब हम समझ गए कि NISAR केवल अंतरिक्ष में घूमने वाला यंत्र नहीं, बल्कि धरती के हर कोने में जीने वाले इंसानों की ज़रूरत है —
तो अगला सवाल यह उठता है:

क्या यह मिशन भविष्य की नई दिशा बन सकता है?
क्या यह विज्ञान की सीमाओं से निकलकर समाधान की नई लहर लाएगा?

निष्कर्ष — 

जब विज्ञान, संवेदना और साझेदारी एक साथ चलें

कई बार हम सोचते हैं कि धरती के बदलते हालात — बर्फ़ के पिघलने से लेकर ज़मीन के धंसने तक — हमारे बस से बाहर हैं।
हम सिर्फ देखने वाले बन जाते हैं, जैसे कोई मूक दर्शक जो आने वाले तूफान की आहट तो सुनता है,
लेकिन कुछ कर नहीं पाता।

लेकिन NISAR उस चुप्पी को तोड़ता है।

यह मिशन बताता है कि जब विज्ञान, संवेदना और अंतरराष्ट्रीय सहयोग साथ आते हैं —
तो हम सिर्फ समस्याओं को समझ नहीं पाते,
बल्कि उन्हें समय रहते पहचान कर हल करने की दिशा में कदम भी उठा सकते हैं।

 NISAR कोई ‘चमत्कार’ नहीं है, बल्कि वो ‘संकेत’ है — कि हम अब अपनी धरती को सिर्फ देख नहीं रहे, बल्कि सुन रहे हैं।

NASA और ISRO का यह साझा सपना एक नई सोच का प्रतीक है: कि वैज्ञानिक नवाचार सिर्फ लैब के लिए नहीं होते, वो खेतों, शहरों, नदियों और जंगलों के लिए भी होते हैं।

हर बार जब NISAR पृथ्वी का चक्कर लगाएगा, वो हमें एक नई कहानी सुनाएगा — कहीं बर्फ़ पिघली, कहीं ज़मीन खिसकी, कहीं जंगल घटे या कहीं पानी बढ़ा।

और इन कहानियों में छिपी होगी हमारी ज़िम्मेदारी — समझने की, सहेजने की, और समाधान खोजने की।

तो अगली बार जब आप आसमान में एक सैटेलाइट चमकता देखें,
याद रखिए — शायद वो NISAR हो, जो धरती की धड़कनें माप रहा हो, और हमें सिखा रहा हो कि वक़्त रहते चेतना ही असली बचाव है। क्योंकि अगर हम धरती को ध्यान से सुनें — तो शायद वो भी हमें जवाब देना शुरू कर दे।

NISAR से जुड़ी कुछ रोचक बातें

NISAR दुनिया का पहला उपग्रह है जो दो अलग-अलग रडार फ्रीक्वेंसी (L-band और S-band) का इस्तेमाल करेगा — जिससे यह बर्फ़, मिट्टी, जंगल, शहर, और समुद्र — सभी को एक जैसी सटीकता से देख सकेगा।

30 जुलाई 2025 को शाम 5:40 बजे IST पर, भारत के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ISRO के GSLV-F16 रॉकेट द्वारा NASA–ISRO NISAR मिशन का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया।

NISAR का पूरा डेटा ओपन-सोर्स होगा। यानी विश्वविद्यालय, शोधकर्ता, नीति-निर्माता और आम लोग — सभी इसका उपयोग कर सकेंगे।

हर 12 दिन में यह पूरी पृथ्वी की स्कैनिंग करेगा, और लाखों वर्ग किलोमीटर की ज़मीन का डेटा एकत्र करेगा — वो भी मिलीमीटर स्तर की सटीकता के साथ।

इस प्रोजेक्ट में NASA और ISRO ने लगभग $1.5 अरब डॉलर का निवेश किया है, और यह अब तक की सबसे बड़ी भारत-अमेरिका अंतरिक्ष साझेदारी में से एक है।

NISAR को बेंगलुरु में ISRO की लेबोरेटरी में असेंबल किया गया, जबकि रडार सिस्टम NASA के जेट प्रोपल्शन लैब (JPL), कैलिफ़ोर्निया में विकसित किया गया।

यह उपग्रह हर मौसम में, दिन-रात काम करेगा — चाहे बादल हों, बारिश हो या घना कोहरा, इसकी निगाहें पृथ्वी की हर हरकत को पकड़ेंगी।

अगर आप भी उन लोगों में हैं जो धरती को बेहतर समझना और संभालना चाहते हैं, तो NISAR की कहानी आपको सिर्फ विज्ञान नहीं — उम्मीद भी देगी।


इस ब्लॉग को पढ़ने और धरती की इस अनसुनी कहानी में हमारे साथ शामिल होने के लिए आपका दिल से धन्यवाद। आपका समय, आपकी जिज्ञासा और आपकी समझ ही इस मिशन जैसे प्रयासों को सार्थक बनाती है। आइए, मिलकर सुनें इस ग्रह की धड़कनें — और उसे सहेजने की दिशा में एक छोटा लेकिन ज़रूरी क़दम बढ़ाएं।


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