भारत ने दुनिया को कई महान वैज्ञानिक, गणितज्ञ और खगोलशास्त्री दिए हैं। इन्हीं में से एक थे ब्रह्मगुप्त – एक ऐसा नाम जिसने शून्य को एक संख्या की तरह परिभाषित किया और गणित को एक नई दिशा दी। आज अगर दुनिया में कैलकुलेटर, कंप्यूटर या साइंस का इतना विकास हुआ है, तो उसके पीछे कहीं न कहीं ब्रह्मगुप्त की सोच और काम भी शामिल है।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि ब्रह्मगुप्त कौन थे, उनका बचपन कैसा था, उन्होंने गणित और खगोल विज्ञान के क्षेत्र में क्या योगदान दिए, और क्यों आज भी उन्हें भारत और दुनिया के महानतम गणितज्ञ और खगोलशास्त्रियों में गिना जाता है।
बचपन और शुरुआती जिंदगी
ब्रह्मगुप्त का जन्म 598 ईस्वी में राजस्थान के भीनमाल (पुराना नाम: भिल्लमाल) नाम की जगह पर हुआ था। उनके पिता का नाम जैशिष्ठ था, जो खुद भी खगोलशास्त्र के जानकार थे। और ब्रह्मगुप्त को भी खगोलशास्त्र और गणित की आरंभिक शिक्षा अपने पिता से मिली थी।
भीनमाल उस समय विद्या और ज्ञान का बड़ा केंद्र था। ब्रह्मगुप्त ने वहीं पढ़ाई की और धीरे-धीरे इतने ज्ञानी बन गए कि 30 साल की उम्र में उज्जैन की वेधशाला (observatory) के प्रमुख बन गए। उस समय उज्जैन खगोलशास्त्र की दुनिया का केंद्र था।
ब्रह्मगुप्त की प्रमुख किताबें
ब्रह्मगुप्त ने कई किताबें लिखीं, जिनमें से दो सबसे ज्यादा मशहूर हैं:
ब्राह्मस्फुटसिद्धात (628 ईस्वी)
यह उनकी सबसे मशहूर और असरदार किताब है। इसमें उन्होंने शून्य और ऋणात्मक संख्याओं (negative numbers) का इस्तेमाल बताया। साथ ही खगोल और गणित से जुड़ी कई बातें लिखीं।
खण्डखाद्य (665 ईस्वी)
यह किताब ज्यादातर ग्रहों की गणना और पंचांग बनाने से जुड़ी है। इसमें बताया गया कि ग्रहों की स्थिति कैसे निकाली जाती है, ग्रहण कब और कैसे होगा आदि।
गणित में ब्रह्मगुप्त के प्रमुख कार्य
1. शून्य का विस्तार और नियम
ब्रह्मगुप्त पहले व्यक्ति थे जिन्होंने शून्य को एक स्वतंत्र संख्या की तरह माना और उसके साथ किए जा सकने वाले गणितीय कार्यों के नियम तय किए। ब्राह्मस्फुटसिद्धांत में उन्होंने लिखा:
"जब किसी धन (positive) संख्या से उसी के बराबर की धन संख्या घटाई जाती है, तो परिणाम शून्य होता है।"
गुणा, भाग, जोड़, घटाव के नियम:
जोड़: a + 0 = a → उदाहरण: 5 + 0 = 5
घटाव: a - 0 = a → उदाहरण: 5 - 0 = 5
गुणा: a × 0 = 0 → उदाहरण: 5 × 0 = 0
भाग: 0 ÷ a = 0 (a ≠ 0) → उदाहरण: 0 ÷ 5 = 0
a ÷ 0 = ? → ब्रह्मगुप्त ने माना कि यह “अनिर्धारित” है (आज भी undefined मानी जाती है)
ब्रह्मगुप्त ने division by zero को '0/0 = 0' जैसा माना, लेकिन बाद में यह सिद्ध किया गया कि 0 से भाग असंभव है। फिर भी, उस दौर के हिसाब से ये बड़ी सोच थी।
2. ऋणात्मक संख्याओं के नियम
ब्रह्मगुप्त से पहले ऋणात्मक संख्याओं का कोई निश्चित प्रयोग नहीं था। उन्होंने सबसे पहले इसे स्वीकार किया और इनके साथ कैलकुलेशन के नियम तय किए।
उदाहरण:
ऋण × ऋण = धन → नुकसान × नुकसान = फायदा → (-3) × (-2) = +6
ऋण × धन = ऋण → नुकसान × फायदा = नुकसान → (-3) × 2 = -6
धन – ऋण = धन + धन → फायदा – नुकसान = ज्यादा फायदा → 5 - (-3) = 8
ऋण – धन = और ज्यादा ऋण → नुकसान – फायदा = ज्यादा घाटा → -5 - 3 = -8
3. बीजगणित में योगदान (Algebra)
ब्रह्मगुप्त ने पहली बार quadratic equations (x² + bx = c) को हल करने का systematic तरीका बताया।
उनके द्वारा हल किया गया समीकरण:
ax² + bx = c
उन्होंने बताया कि इसे हल करने के लिए:
x = [√(b² + 4ac) – b] / 2a
आज इसे हम quadratic formula कहते हैं। उन्होंने इसे शब्दों और उदाहरणों के ज़रिए समझाया, क्योंकि उनके समय में प्रतीक (symbols) का उपयोग नहीं होता था।
4. ब्रह्मगुप्त का प्रमेय (Theorem)
यह प्रमेय ज्यामिति से जुड़ा हुआ है। उन्होंने बताया कि अगर कोई चतुर्भुज एक वृत्त के अंदर बना हो, और उसके विकर्ण एक-दूसरे को समकोण (90 डिग्री) पर काटते हों, तो उसमें एक खास तरह का संतुलन रहता है।
इसके साथ ही उन्होंने एक और फॉर्मूला दिया जिसे ब्रह्मगुप्त सूत्र कहते हैं — इससे चतुर्भुज का क्षेत्रफल निकाला जा सकता है:
क्षेत्रफल = √{(s-a)(s-b)(s-c)(s-d)}
जहाँ a, b, c, d चतुर्भुज की भुजाएं हैं, और
s = (a + b + c + d)/2
5. प्रगति श्रृंखला (Progressions)
ब्रह्मगुप्त ने अंक श्रंखला (series) की गणना करना सिखाया, जैसे:
Arithmetic Progression (AP)
Geometric Progression (GP)
उदाहरण:
AP = a, a+d, a+2d, ..., a+(n–1)d
उसका योग = (n/2)[2a + (n–1)d]
आज जो हम कक्षा 10-12 में पढ़ते हैं, वो उन्होंने 7वीं सदी में ही दे दिया था।
खगोलशास्त्र में ब्रह्मगुप्त का योगदान
ग्रहों की गति और स्थिति की गणना
उन्होंने बताया कि कैसे ग्रह सूर्य के चारों ओर चलते हैं और उनकी स्थिति किसी भी दिन कैसे निकाली जा सकती है।
उनकी गणना पद्धति इतनी सटीक थी कि उसका उपयोग सैकड़ों वर्षों तक पंचांग बनाने में किया गया।
सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की भविष्यवाणी
उन्होंने वैज्ञानिक ढंग से समझाया कि ग्रहण खगोलीय घटना है, न कि कोई राक्षस निगलता है।
पृथ्वी की गोलाई और गुरुत्वाकर्षण का विचार
ब्रह्मगुप्त ने माना कि पृथ्वी गोल है और वस्तुएं उसकी ओर खींची जाती हैं — यह सोच न्यूटन से 1000 साल पहले आई।
दैनिक समय और दिन-रात की गणना
उन्होंने बताया कि नाड़ी, पल, मास, और वर्ष की सही गणना कैसे की जाए। सूर्योदय-सूर्यास्त निकालने की विधि भी बताई।
त्रिकोणमिति का इस्तेमाल
उन्होंने साइन (ज्या), कोसाइन (कोज्या) और तालिकाएं दीं — जो modern trigonometry की नींव बनीं।
धर्म और विज्ञान का संतुलन
ब्रह्मगुप्त धार्मिक थे, शिवभक्त थे, लेकिन उन्होंने विज्ञान को कभी रोका नहीं। उनकी कई धारणाएं आज भी वैज्ञानिक रूप से सही मानी जाती हैं।
हालांकि उन्होंने यह नहीं माना कि पृथ्वी घूमती है, पर उनकी बाकी गणनाएं बहुत सटीक थीं।
ब्रह्मगुप्त का असर दुनिया पर
अब्बासी खलीफा अल-मंसूर के आदेश पर उनकी किताबों का अरबी में अनुवाद हुआ, जिसे "Sindhind" कहा गया।
उनके विचार इस्लामी दुनिया से यूरोप पहुंचे। आज जो Arabic numerals (0–9) हम कहते हैं, वो असल में Indian numerals हैं — और ब्रह्मगुप्त उनके प्रमुख जनक हैं।
आखिरी समय और विरासत
उनका निधन 668 ईस्वी के आसपास माना जाता है।
उनका काम आने वाले सैकड़ों सालों तक भारत, अरब और यूरोप के वैज्ञानिकों के लिए आधार बना रहा।
निष्कर्ष
ब्रह्मगुप्त ने “शून्य” को संख्या बनाया, ऋणात्मक संख्याओं को समझाया, कठिन समीकरण हल किए और तारों-ग्रहों की स्थिति बताई।
वो एक ऐसे वैज्ञानिक थे जिनकी सोच आज की तकनीक की नींव है।
अगली बार जब आप 0 देखें, तो समझिए — उसके पीछे ब्रह्मगुप्त की सोच है।
इतना समय देकर पढ़ने के लिए धन्यवाद।
